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  • Writer's pictureDr. P.K. Shrivastava

भारत में पशु-चारे की कमी, कारण और निवारण

परिचय:

भारत में पशुपालन पुरातन काल से कृषि कार्य से जुड़ा हुआ है, जबकि जानवरों को कृषि कार्य और घर-खर्च हेतु दूध के लिए पाला जाता था। आज भारत विश्व के भू-क्षेत्र का 2.3% रखते हुए भी, विश्व के 20% पशुधन और 17.7% मानव को पाल रहा है। भारत का कुल भू-क्षेत्र 329 मिलियन हेक्टेयर है, जबकि कुल ग्रॉस कृषि क्षेत्र 195 मिलियन हेक्टेयर और कुल बोया जा रहा कृषि क्षेत्र 141 मिलियन हेक्टेयर है। जिसमें से कुल सिंचित कृषि-क्षेत्र मात्र 63.3 मिलियन हेक्टेयर ही है, जबकि बाकी कृषि-क्षेत्र वर्षा-आधारित (rain-fed) क्षेत्र है (स्रोत: जीके टुडे)1


कई कारणों, जिनमें मुख्य चारे की कमी है, से पशु-राशन के तीनों अवयवों (1) हर चारा (2) सुखा चारा और (3) संतुलित-पशु आहार के दाम बाजारों में आसमान छू रहे हैं, जिसके कारण किसान अपने पशुओं को कामचलाऊँ तरह से खिलाने में भी कठिनाई महसूस कर रहे हैं। वैसे देखें तो भारत में ज्यादातर पशुधन का पोषण “सामूहिक प्रापर्टी संसाधन क्षेत्र” (सा. प्रा. क्षेत्र) में चरने और “घर में उपलब्ध चुनी-चोकर, भूसे” आदि पर ही आधारित रहता है । चूँकि “भूमि” विषय राज्य सरकारों के अधीन आता है, इस लिए भूमि का प्रबंधन भी राज्य सरकारों के अधीन ही रहता है और इसलिए सा. प्रा. क्षेत्र का प्रबंधन भी राज्यों के अधीन रहता है, जिसमें से वन-भूमि, वन विभाग के अधीन रहता है। बाकी सा. प्रा. क्षेत्र अधिकतर वर्षा-आधारित होता है, जो ज्यादातर या तो कम उपजाऊँ है या शहरी-क्षेत्र बनता जा रहा है और दिनों-दिन सा. प्रा. क्षेत्र का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण मेरे विचार से सा. प्रा. क्षेत्र का आबंटन किसी उचित राजकीय संस्था को नहीं होना ही लगता है, जहाँ कृषि विभाग इसे पशुपालन का और पशुपालन विभाग इसे कृषि विभाग की प्रॉपर्टी समझते हैं। मैंने यह भी देखा है कि जब सा. प्रा. क्षेत्र के उपयोग की बात आती है तो ये सबका और जब प्रबंधन की बात आती है तो ये किसी का नहीं रहता, ज्यादातर ये उसका रहता है जिसकी लाठी होती है।


भारत विश्व में सबसे अधिक पशु प्रजातियों वाला देश है, यहाँ अच्छे दुधारू पशु बहुतायत में उपलब्ध हैं, अच्छे संस्थागत संसाधन तथा तकनीकी कार्यक्षमता का मानवसंसाधन उपलब्ध है, जिसने “हरित” और “श्वेत क्रांतियों” को सफल बनाया है। विश्व बैंक के अनुदित कार्यक्रम “ऑपरेशन फ्लड” के कारण भारत दुनियाँ में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश सन 1998 में ही बन गया और अभी भी बना हुआ है, तथा आगे भी बने रहने की सांभावना है । भारत में दूध अकेले सबसे बड़ा कृषि उत्पाद बन कर उभरा है, जिसे मूल्य के तौर पर देखें तो वो भारत में उत्पन्न सभी अनाज, तिलहन, दलहन, आदि को जोड़ देने पर भी उनके सामूहिक मूल्य से आगे निकल गया है । क्या यही कारण था कि 70 वर्षों के बाद “डेयरी” को अलग मंत्रालय मिला, जिसके माध्यम से सरकारी नीतियों को आसानी से लागू कर पाना संभव हो पाएगा? परंतु खेद है कि आज भी देश के “डेयरी व्यवसाय” के एक मुख्य आधार विषय, “चारे” के प्रबंधन और विकास की जिम्मेदारी भारत सरकार के द्वारा “पशुपालन, डेयरी और मत्स्य विभाग” (DADF, GOI), के किसी एक संस्था को नहीं दी गई है।


नीति आयोग के रिपोर्ट 2020 के अनुसार, डिपार्टमेंट ऑफ ऐग्रिकल्चर, सहकारिता और किसान वेल्फेयर, भारत सरकार, (DAC&FW) ही सभी फसलों के बीजों के माँग, उत्पादन, संकलन और वितरण आदि के लिए योजना बनाता है, ताज्जुब की बात है कि इसमें “पशु-चारा बीज” शामिल नहीं होता। यही नहीं, जहाँ कृषि-बीजों के लिए 100% विदेशी सीधा निवेश उपलब्ध है, वहीं चारे के बीजों हेतु ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है । भारत में केवल IGFRI झांसी और उसके क्षेत्रीय अनुसंधान स्टेशन जैसे; धारवाड़ (कर्नाटक), अविकानगर (राजस्थान) और पालनपुर (हिमांचल प्रदेश); DADF, GOI, द्वारा संचालित “क्षेत्रीय चारा स्टेशन” (जो फाउंडेशन बीज उत्पन्न करते हैं) तथा देश की कृषि विश्वविद्यालय, कुछ कृषि विकास केंद्र, आदि ही चारे के बीज और उसके विकास आदि के कार्य देखते हैं।


पशु पोषण का एक महत्वपूर्ण अवयव- “संतुलित पशु आहार” (Balance Cattle Feed), जिसका प्रबंधन देश में सहकारी डेयरियों और प्राइवेट संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है, परंतु इसका कुल उत्पादन देश के माँग से हमेशा कम ही रहता है । “संतुलित पशु आहार” के ब्यवसायिक स्तर पर उत्पादन की शुरुआत राष्टीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा 1970 के दशक में ऑपरेशन फ्लड के अंतर्गत किया गया था। ज्ञात हो कि “संतुलित पशु आहार” के उत्पादन में मुख्य अवयव के रूप में द्वितीय श्रेणी के अनाजों तथा राइस-ब्रान, डी-ऑएल्ड केक (खली) आदि का उपयोग किया जाता है, जो सीजन के अनुसार कृषि-मंडियों से प्राप्त होता है। इन वस्तुओं की कीमतें, दिनों -दिन बढ़ती जा रही है, जिसका असर “संतुलित पशु आहार” के कीमत पर पड़ रहा है। जो कुछ भी हो, यह व्यवसाय फायदे का है तभी प्राइवेट संस्थाएं इसमें अकूत धन लगाकर इसका उत्पादन करतीं हैं और बनी हुई हैं । हमारे एनुमान के अनुसार ज्यादातर सहकारी “संतुलित पशु आहार” फैक्ट्रियाँ नुकसान या कम फायदे में चलतीं हैं।


तकनीकि के अनुसार “संतुलित पशु आहार” प्रत्येक दुधारू पशु को 400-450 ग्राम प्रति लीटर दूध उत्पादन के अनुसार दिया जाना चाहिए। साथ में 1 किलो पशु के शरीर प्रबंधन के लिए अलग से पशु-आहार दिया जान चाहिए । जब ये “संतुलित पशु आहार” 28 से 36 रुपये प्रति किलो के दाम से बिकते हैं, तो भला किसान कैसे अपने दुधारू पशुओं को इन्हें खिला पाएगा, जबकि उसके दूध की औसत कीमत 32-38 रूपये प्रति लीटर ही सहकारी अथवा प्राइवेट संस्थाओं द्वारा दिया जाता है। सोचना होगा कि यहाँ अन्य प्रबंधन खर्च को जोड़ना अभी बाकी है। लगातार अनुसंधान या तकनीकि सलाह के बाद (आज 75 वर्षों बाद) भी गृह-कृषि उत्पादों (Agri-residue) का पूरे देश में “पशु आहार” के रूप में खिलाना जारी है, जबकि यह संतुलित-आहार नहीं होता है। ज्ञात हो कि ये प्रथा देश भर में देखी जा सकती है, जहाँ “पाउडर-पशु आहार” या “चुनी-चोकर” पूरे देश में खुले बिकते हैं।


हम सभी जानते हैं कि;

  1. भारत में डेयरी जनमानस द्वारा छोटे-छोटे स्तर पर चलाया जाता है, यहाँ 75% पशुधन इन्हीं छोटे, अति-छोटे, और भूमिहीन-मजदूर किसानों के पास हैं तथा ये पशुधन ज्यादातर उसर- बाहुल्य क्षेत्रों में हैं,

  2. पशु पोषण पर करीब 70-75% तक का खर्च बताया जाता है, जिसमें 55 से 60% “संतुलित पशु आहार” का हिस्सा होता है,

  3. यदि पशु समुचित हरा चारा खाते हैं तो “संतुलित पशु आहार” की आवश्यकता कम हो जाती है। जिससे दूध उत्पादन की प्रति लीटर कीमत कम हो जाती है, क्यूंकि हरे चारे की अपेक्षा, संतुलित पशु आहार की कीमत बहुत ज्यादा होती है,

  4. भारत में दुधारू पशु अधिकतर “ऋणात्मक शारीरिक शक्ति अवस्था” में पाले जाते हैं, यानि कुपोषित अवस्था में, जिसके कारण वो अपने पूर्ण क्षमता पर दूध नहीं दे पाते। यही कारण है कि भारत में “प्रति पशु प्रति ब्याँत” दूध उत्पादन विकसित देशों की अपेक्षा अत्यंत कम है।

  5. हरा चारा नहीं खिलाने के कारण पशुओं में प्रजनन संबंधी परेशानियाँ और अन्य बीमारियाँ आ जातीं हैं, इससे प्रति लीटर दूध उत्पादन मूल्य बढ़ जाता है, जानवर समय से गाभिन नहीं हो पाता, दो बच्चों के व्यांत पीरिएड (inter-calving period) लंबा हो जाता है, जो किसी फार्म व्यवसाय को घाटे में ले जाने के लिए काफी होता है,

  6. हरा चारा नहीं मिलने की स्थिति में डेयरी ब्यवसाई ज्यादा “संतुलित पशु आहार” खिलाने लगते हैं जिसके कारण पशु-पोषण पर कीमत बढ़ जाती है, पशु एसिडोसिस, मेस्टाइटीस (थनैला रोग), ब्रूसेलोसिस रोग और कई मिनेरल की कमी का शिकार हो जाता है। फार्म व्यवसाय में घाटे का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है,

  7. चारे की कमी को अवसर बनाकर, प्राइवेट व्यापारी हरे चारे के उत्पादन, संकलन, संचयन और विपणन का ब्यवसाय करने लगे हैं, साइलेज के बेल बाज़ार में मिलने लगे हैं, जो एक राज्य से दूसरे राज्यों में बेंचे जा रहे हैं। असाम में धान कटने के पहले ही फार्म ब्यवसाई खेत का पुआल खरीद लेते हैं, जिसे “टाल” लगाकर पशुओं को वर्ष भर खिलाने में उपयोग किया जाता है,

भारत पहले से ही नॉन-डिस्क्रिप्ट और कम दूध पैदा करने वाले पशुओं की संख्या से जूझ रहा है, चारे की कमी इसमें और बढ़ोत्तरी करती है क्यूंकि चारे के अभाव में पशु का दूध कम हो जाता है, जिसपर ध्यान देना आवश्यक है।


भारत में चारे और पशु-आहार की कमी:


भारत में “चारा” मुख्य रूप से गोचर, क्रॉप-रेज़िडू, खिलाए जाने वाले घास-फूस, बोए गए चारा, चारा-पेड़ और ऍग्रो-इंडस्ट्री वेस्ट से मिलता है। उपलब्ध सा. प्रा. क्षेत्र से प्रति हेक्ट ज्यादा से ज्यादा चारे के उत्पादन करने की बात कही जाती है, जो संभव नहीं लगता, जब तक कि कोई देश-व्यापी परियोजना को “मिशन-मोड” पर नहीं चलाया जाता। “दी प्रिन्ट” के श्री सम्यक पाण्डेय2 के अनुसार देश में 23.4% सूखे चारे, 11.23% हरे चारे और 28.90% “संतुलित पशु-आहार” की कमी है। जबकि ग्रुप ऑफ सेक्रेटरी, DADF, GOI के अनुसार 35% सूखे चारे की और 45% “संतुलित पशु-आहार” की कमी बताई गई है। “दी प्रिन्ट” पुनः लिखता है कि दस सबसे ज्यादा पशुधन रखने वाले प्रदेशों में से झारखंड में हरे चारे की भारी कमी (67%), उत्तराखंड में 55% और ओडिशा में 44.8% पाई गई है। IGFRI के श्री ए.के. रॉय के अनुसार, बौने जाति के खाद्यान्नों के उपयोग के कारण तथा कार्बाइन से खेतों की कटाई कराए जाने के कारण भारत में चारे की कमी होती जा रही है।


भारत के एक्सिलेरेटेड फाडर डेवलपमेंट प्रोग्राम-2023 (AFDP)3 , जो DADF, GOI द्वारा सन 2011-12 से चलाया जा रहा है, के उद्येश्य, कि “किसानों से अतिरिक्त खेत, चारा उपजाने के लिए आबंटित कराए जाएंगे”, हमें यथार्थ से परे लगता है। डायरेक्टोरेट ऑफ इकनॉमिक और स्टैटिस्टिक, कृषि, कोऑपरेशन एवं किसान वेल्फेयर विभाग, भारत सरकार के अनुसार कुल चारा बोया गया क्षेत्र 9.13 मिलियन हेक्ट, जो कुल बोए गए जमीन का 4.9% है, पिछले 25 वर्षों से न बढ़ा है न घटा है। इन्हीं वर्षों के दौरान भारत का कैटिल पशुधन 1.5 गुना और मानव जनसंख्या करीब 3.5 गुना (36.1 करोड़ 1951 में और 120 करोड़ 2011 में) हो गई है। भारत सरकार के माननीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर जी के द्वारा राज्य सभा में दिए गए कुल एरेबल जमीन के आंकड़ों के अनुसार, सन 2009-10 की तुलना में सन 2018-19 में कुल एरेबल जमीन 182,179 हज़ार हेक्ट (2009-10) से घटकर 2018-19 में 180,888 हज़ार हेक्ट ही रह गई है (स्रोत: PIB Delhi, posted on: 16 DEC 2022 6:34 PM4)। यदि AFDP प्रोग्राम पिछले 10-11 वर्षों से चलाया जा रहा है तो उसका परिणाम तो अब तक दिखना चाहिए?



फ़ोटो: द्वारा डॉ पी के श्रीवास्तव, डेयरी ब्यवसाय कॉनसल्टेंट, बैंगलोर


भारत में 85% किसान छोटे, अति-छोटे और भूमिहीन-मजदूर हैं, जिनके पास कुल बोए गए जमीन का 47% ही है, जबकि वो देश के करीब 75% पशुधन रखते हैं, इसके विपरीत 53% जमीन बड़े और मझोले किसानों के पास हैं, जिनके पास केवल देश के 25% पशुधन है। साथ ही भारत की जनसंख्या निरन्तर बढ़ने से, प्रति-परिवार-भूमि कम हो जाने के कारण ये छोटे किसान और भूमिहीन-मजदूर अपने परिवार का पोषण करने में ही परेशान रहते हैं। और ये संभव नहीं लगता कि बड़े किसान अपने जमीन में चारा उगाने के लिए आगे आएंगे, जबतक कि कोई सरकारी प्रोत्साहन या ब्यापारिक फायदा न दिखता हो।


भारत के नीति नियंता ये जानते हैं कि “हरा और सूखा चारा”, जानवरों को स्वस्थ रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है और उसका प्रबंधन होना चाहिए। मेरे विचार से संभवतः वर्तमान केन्द्रीय सरकार के रहते बजट की भी समस्या नहीं होगी। केवल “हरे और सूखे चारे” के प्रबंधन में गुणवत्ता लाने की जरूरत है। श्री ए. के. रॉय IGFRI के अनुसार, अभी देश में “चारे” को उपजाने, उसके रख रखाव, गुणवत्ता बढ़ाने और किसान तक पहुंचाने के लिए कोई सुदृढ़-दूरगामी सरकारी योजना “मिशन-मोड” पर किसी काबिल संस्था द्वारा लागू नहीं की जा रही है (संदर्भ: A. K. Roy, R. K. Agrawal, N. R. Bhardwaj; ICAR- AICRP on Forage Crops and Utilization, Jhansi, India, pp. 1-21; complete book for Darpan)8.


उत्तम बीज उत्पादन और उसकी उपलब्धि:


प्रति हेक्ट चारे के ज्यादा उत्पादन हेतु बढ़िया, सर्टीफाइड बीज की आवश्यकता होती है। जबकि इस समय चारा-बीज के उत्पादन, संकलन, और किसानों को वितरण की देशव्यापी कोई भी योजना नहीं चलाइ जा रही है। समय से बीज की उपलब्धि न होना, चारे के उत्पादन में एक बहुत ही बड़ा अड़चन है, क्यूंकि चारे की “बीज-शृंखला” अभी NSC अथवा SSC में उपलब्ध नहीं है और साथ ही राज्यों में कोई संस्थागत व्यवस्था भी सुदृढ़ नहीं है। देश के क्षेत्रीय फोडर स्टेशन, जो कि DADF के अधीन हैं, फाउंडेशन बीज का उत्पादन कर तो रहे हैं, परंतु चारा-बीज को राज्यों तक और “मिनी-किट” के रूप में किसानों तक पहुंचाने में कई राज्य लोजिस्टिक अथवा अन्य समस्यावों से घिर कर रह जाते हैं। बीज का समुचित उपयोग नहीं हो पाता, ये कहना है; NITI AYOG REPORT-2020, coverage of fodder and feed security program5)।


श्री मानवीर सिंह, CEO, काशी दुग्ध उत्पादक प्रोड्यूसर कंपनी, वाराणसी6 , के अनुसार भूमि से अधिक पशुधन का प्रबंधनन ज्यादातर छोटे, अति छोटे और भूमिहीन मजदूर ही करते हैं। वो आगे बताते हैं कि पशुधन, खेती के फेल होने की दशा में एक प्रकार से “बीमा” का काम करता है। मेरे विचार से, यही कारण है कि भारत में दूध व्यापार जनमानस द्वारा छोटे-छोटे स्तर पर किया जाता है, न कि बड़े स्तर पर, जैसे कि विकसित देशों में होता है और शायद यही कारण है कि डेयरी के विकास में असंख्य हाथ लगे हैं जो अपने स्तर से इसे अपने जीविका के लिए विकसित करने का कार्य कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप आज देश के 80% ग्रामीण परिवार पशुधन पर निर्भर हैं।


श्री सिंह आगे बताते हैं कि चारे की राष्ट्रीय कमी से ज्यादा क्षेत्रीय कमी मायने रखती है, क्यूंकि चारे (हरे या सूखे) को एक स्थान से दूसरे सुदूर स्थान पर ले जाना आर्थिक रूप से संभव नहीं होता है। उनके अनुसार “चारे और संतुलित पशुआहार की कमी” दूर करना किसानों के वश की बात नहीं है।


सामूहिक प्रापर्टी संसाधान क्षेत्र (सा. प्रो. सं. क्षेत्र):


राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के संस्थाओं से आई रिपोर्ट के अनुसार देश में बहुत बड़ा क्षेत्र, “सामूहिक प्रापर्टी संसाधान क्षेत्र” के रूप में उपलब्ध है; जैसे:- वन, आबंटित चारागाह, बोने योग्य बेकार पड़ी जमीनें, परती जमीनें, आदि। परंतु शहरीकरण, वन-कटाई और गोचर भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित होने के कारण इनकी उपलब्धता साल-दर-साल कम होती जा रही है। सामूहिक प्रापर्टी संसाधान क्षेत्र से सही लाभ लेने के लिए इन्हें पुनः संकलित, रेगुलेट तथा संघनित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही वर्तमान कृषि-भूमि के ज्यादा न्यूट्रीएंट दोहन, भूस्खलन, पानी की कमी, जलवायु के विपरीत प्रभाव के कारण घट रहे उपजाऊँपन से बचाना आवश्यक है। यही सब कारण हैं कि वर्तमान कृषि-भूमि से औसत कृषि उत्पादकता कम होती जा रही है, कहना है “Degraded and Wastelands of India Status and Spatial Distribution” report 2010 by ICAR and NAAS7(https://icar.org.in/files/egraded-and-Wastelands.pdf)


शारांश :


विगत 42 वर्षों में किसानों के साथ अपने जुड़ाव से अर्जित अनुभव के आधार पर यह लिख सकता हूँ कि सरकारें विचारक, दिग्दर्शक और नियामक तो हो सकती है, परंतु परियोजनाओं के क्रियान्वयन का जिम्मा उस विषय के एक्सपर्ट संस्था को ही दिया जाना चाहिए। क्यूंकि प्रत्येक परियोजना में उसे स्वतः-जीवी बनाने के लिए एक व्यावसायिक सोंच का होना आवश्यक होता है, तभी परियोजनाओं का प्रभाव दूरगामी होता है, अन्यथा उनका प्रभाव अल्पकालिक ही रहता है ।


लेखक के अनुसार मतस्य, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय विभाग, भारत सरकार को उपरोक्त बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए और एक देशव्यापी-दूरगामी “पशु-पोषण” परियोना तैयार करवाना चाहिए, जिसका क्रियान्वयन किसी देशव्यापी एक्सपर्ट संस्था को सौंपना चाहिए। यह संस्था, उस परियोजना को “अभियान” के रूप (Mission-Mode) में चलाए, जिससे कि भारत के छोटे, अति-छोटे और भूमिहीन किसानों को अपने पशुधन के लिए “हरा और सूखा चारा” तथा “संतुलित पशु आहार” समय पर मिल सके। विश्वास करें, यदि ऐसा हुआ तो देश का दुग्ध उत्पादन इन्ही वर्तमान पशुधन से करीब दो गुना किया जा सकता है। यह दिवास्वप्न नहीं, बिल्कुल सत्य है, “चारा” और “संतुलित पशु आहार” समय और समुचित पर मूल्य पर मिलने से, यही दुधरू पशु अपनी पूरी क्षमता पर दूध दे पाएंगे और देश का दुग्ध उत्पादन दो गुना हो जाएगा।


References:

  1. GK Today; https://www.gktoday.in/topic/gross-cropped-area-and-net-cropped-area-in-india/

  2. The Print, Samyak Pandey, reports shortage of animal feed & fodder in January 2020: https://theprint.in/india/fodder-shortage-in-india-major-reason-behind-rise-in-milk-costs-says-govt-institute/347883/

  3. Accelerated Fodder Development Program (GOI) 2023; https://agribooks.co/accelerated-fodder-development-programme-afdp/

  4. https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1884246; PIB Delhi, posted on: 16 DEC 2022 6:34 PM; data about the total arable land in India from 2009-10 to 2018-19

  5. NITI AYOG REPORT-2020; https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2021-08/Working-Group-Report-Demand-Supply-30-07-21.pdf

  6. Singh M., Innovative approaches towards fodder production and conservation with special reference to common property resources; ANACON 2023, Feb 16-18, 2023, Duvasu Mathura (Up)

  7. Degraded and Wastelands of India Status and Spatial Distribution” report 2010; https://icar.org.in/files/egraded-and-Wastelands.pdf

  8. A. K. Roy, R. K. Agrawal, N. R. Bhardwaj). ICAR- AICRP on Forage Crops and Utilization, Jhansi, India, pp. 1-21; complete book for Darpan

लेखक:

डा पी के श्रीवास्तव, Ex-NDDB

डेयरी ब्यवसाय कॉनसल्टेंट

डेयरी ब्यवसाय गुरु

M/s डेयरी कॉनसल्टेंसी इंडिया, बंगलोर

Email: dairyconsultancyindia@gmail.com

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