भूमिका:
पिछले आर्टिकिल “भारत में डेयरी फार्म व्यवसाइयों की चुनौतियां, कारण और निदान– भाग-1” में आप निम्न के बारे में जान चुके हैं:
1. सहकारी और निजी डेयरियाँ, उन्हे सरकारी सहयोग और उनकी कार्य प्रणाली में अंतर
2. सोशल मीडिया पर डेयरी लगाने हेतु बँटता अधूरा ज्ञान
3. दुग्ध व्यवसायी और दुग्ध उत्पादक में अंतर
4. बीस या 50 दुधारू पशु का एक फार्म लगाने में अनुमानित कैपिटल लागत और सब्सिडी
5. सरकारी अनुदान योजनाएं, बैंक लोन आदि में आने वाली चुनौतियाँ और वास्तविकता
6. दोषी कौन, आदि
इस भाग में आप पढ़ेंगे,
1. डेयरी फार्म उद्योग की मुख्य चुनौतियाँ और उनका निदान
2. नाबार्ड की न्यू योजनाएं (नाबार्ड योजना 2022)- संभावनाएं
3. नाबार्ड के योजना 2022 और राष्ट्रीय गोकुल मिशन से सम्बद्ध राज्य स्तर पर दिए जा रहे अनुदानों की जानकारी, जैसे कामधेनु योजना राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश गोपालक योजना 2022, आदि
4. पशु-बीमा (संक्षिप्त विवरण)
डेयरी फार्म उद्योग की मुख्य चुनौतियाँ और उनका निदान:
भारत में कृषि जीविकोपार्जन का एक प्रमुख स्रोत तो है, खासकर डेयरी जो नित्य आमदनी का स्रोत बन सकता है। परंतु भारत में कृषि में निवेश की व्यवस्था अत्यंत अल्प और जटिल है। जिसके कारण उपयोगी संसाधनों की कमी बनी रहती है। यही प्रमुख कारण हैं कि भारत में डेयरी फार्म व्यवसाय लगाना दिन प्रति दिन महंगा होता जा रहा है। यूँ तो एक विषय पर एक आर्टिकिल लिखा जा सकता है, परंतु हमारी कोशिश रहती है कि मेरे आर्टिकिल से संक्षिप्त में ज्यादा से ज्यादा जानकारियाँ पाठकों को मिल सकें। निम्न चुनौतियों पर ध्यान दें:
1. लागत और तकनीकी संसाधनों की कमी:
a. कम खर्चे वाले उत्तम तकनीकी संसाधनों की भारत में सर्वथा कमी है,
b. पशुधन के सहायतार्थ बनाए गए पशु पालन विभाग से समय पर समुचित सहयोग न मिल पाना भी एक चुनौती है,
c. संसाधनों के अभाव में छोटे फार्म लगाना पड़ता है जिससे लागत/खर्च भी नहीं निकल पाता,
d. सरकारी उद्घोषित आर्थिक सहायतार्थ योजनाओं का कृषक तक न पहुँच पाना,
e. ज्यादातर छोटे और मझोले डेयरी व्यवसायी (5 से 10 करोड़ के कैपिटल लागत वाले) को उद्घोषित सरकारी योजनाओं से कोई आशा नही रहती, केवल बैंक-ऋण व्यवस्था से (जिनके नियम अति-उलझे हुए होते हैं) से ही ऋण की उम्मीद रहती जाती है, आदि
2. प्रोफेशनल और प्रशिक्षित लेबर फोर्स का न होना:
a. भारत में लेबर, किसी न किसी फार्म में रहकर अपने उस्ताद से फार्म चलाना सीखता है और बाद में स्वयं उस्ताद बन जाता है और फार्म चला लेने का दावा करता है। अपने इस आधे ज्ञान और रूढ़िवादिता के कारण वो अंततः फार्म बंद करवा देता है,
b. डेयरी व्यवसायी का लेबर पर पूर्ण निर्भरता भी एक भरी भूल है, (डेयरी व्यवसायी लेबर पर पूर्ण निर्बर न रहें),
c. लेबर प्रशिक्षण हेतु कोई सटीक एजेंसी का न होना। सरकारें प्रति राज्य में ऐसा प्रशिक्षण चलातीं तो हैं, पर उनमें प्रशिक्षण लेने लेबर नहीं, सरकारी व्यक्ति, नवोदित डेयरी व्यवसायी, डेयरी व्यवसाय मे रुचि रखने वाले ही सीखने जाते है।
d. फार्म लेबर के नौकरी में कोई सिकुरिटी का न होना और उसे बिचौलिये के ऊपर निर्भर होना,
e. फार्म पर किसी को भी पशु के हाव-भाव को पढ़ पाने का तरीका मालूम न होना (ज्यातर पशु अपने हाव-भाव से अपने स्वास्थ्य, खानपान और खुशहाली के विषय में बताते रहते हैं, जिसे पढ़ना आवश्यक होता है, ये एक कला है जिसका सदा अभाव होता है)
3. पशु को नित्य समुचित राशन न मिलना:
a. आज भी डेयरी के लिए ये भ्रांति है कि यह कृषि का एक उप-व्यवसाय है, जानवरों को कृषि के बचे हुए खाद्य खिलाकर पाला जा सकता है,
b. देश में चारे के लिए जमीन का आबंटन अत्यंत कम अनाज और कैश क्रॉप का ज्यादा होना,
c. पशु के फार्म पर आने से दो माह पहले चारा नहीं बोया जाता,
d. कितना, किस पशु को और कब खिलना है कि जानकारी किसानों को न होना,
e. वर्ष भर हरे चारे या साइलेज की व्यवस्था का न होना, सादे पुआल खिलाना,
f. राशन में फूड-एडीटीव और मिनेरल मिक्स्चर, यूरिया मोलासेस ब्लॉकक आदि का न होना,
g. फार्म पर पशु के लिए 24/7 चारे और पानी की व्यवस्था का न होना,आदि
4. बछड़े-बछिया की देखरेख में कोताही:
a. अति आवश्यक है कि बछड़े और बछिया की देखरेख सुनिश्चित की जाए ताकी वो आगे चलकर एक स्वस्थ गाय/ भैंस बन सके। इस विचार का अकसर अभाव होता है,
b. बछड़े को माँ से अलग (वीनिंग) का तकनीकी प्रणाली से न किया जाना,
c. बछिया को समुचित राशन (खुराक) न दिया जाना, जिससे वो एक स्वस्थ गाय/भैंस नहीं बन पाती, इसका पता तब चलता है जब उसे गाभिन करने का समय आता है, तबतक बहुत देर हो चुकी होती है,
d. बछड़े-बछिया का राशन अलग होता है, इस ज्ञान का अभाव होना, या आर्थिक कारणों से इसकी पूर्ति न होना,
e. बछड़े-बछिया को रोग से बचाव के उपायों का न किया जाना, आदि
5. समुचित और समय पर दवा और गर्भाधान की व्यवस्था में शिथिलता:
a. फार्म पर प्रशिक्षित कर्मचारी अथवा कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था का न होने के कारण पशु के कृत्रिम गर्भाधान के लिए पशुपालन विभाग पर आश्रित रहना,
b. फार्म पर कृत्रिम गर्भाधान के उपकरण और उनका रख रखाव हेतु लिक्विड नाइट्रोजन का न होना, जिसके कारण सिमेन dose का खराब हो जाना और समय से गर्भाधान न हो पाना,
c. पशु के गाभिन होने की जांच व्यवस्था ढीली होना,
d. समय से पशुओं को टीकाकरण और बीमारियों का इलाज न मिलना,
e. गाभिन पशु को समय से सुखाये जाने की प्रणाली का सर्वदा अभाव होना,
f. नस्ल-वार गर्भाधान (नस्ल के अनुसार वीर्य) की व्यवस्था का न होना,
g. पशु गर्भाधान का निर्णय फार्म द्वारा न लेकर पशुपालन विभाग के कर्मचारी द्वारा लिया जाना (जो भी वीर्य उपलब्ध हो उसी से गर्भाधान कर दिया जाना),
h. क्वॉरन्टीन और नये खरीदे गए तथा बीमार पशु को अलग रखने की व्यवस्था का अभाव होना,
i. फार्म पर छोटी डिस्पेंसरी का अभाव, जिससे अकस्मात रोग या चोट या अन्य किसी स्थिति का निदान किया जा सके,
j. प्रसव के समय अश्यक सामग्री और प्रसव कमरे / स्थान का न होना, आदि
6. पशु सेलेक्शन, खरीद और फार्म से निकासी:
a. भारत में सुदृढ़ पशु बाज़ार का न होना। पशु खरीद की कोई सुदृढ़ व्यवस्था नहीं होने के कारण पशु खरीद हेतु किसान पूरी तरह बिचौलियों पर निर्भर होता है, जहाँ अकसर धोखा मिलता है,
b. किसान भी पशु खरीद के समय किसी तकनीकी विद से सलाह नहीं लेता और धोखा खाता है,
c. पशु सिलेक्शन हेतु किसानों या बिचौलियों के पास प्रजनन के आंकड़ों का न होना,
d. पशु-कीमत का कोई तकनीकी मानदंड का न होना (पशु के प्रजनन आंकड़ों के अभाव में पशु-खरीद अनुमानित लागत पर ही होता है, जिसमें धोखा होना संभव है),
e. पशु-खरीद में धोखा देने हेतु अनेक अनुचित साधनों और क्रिया-कलापों का प्रयोग होना,
f. पशु-निकासी, जैसे कम उत्पादन वाले पशुओं को अन्य किसानों को कम दामों पर बेचना और लगातार अच्छे उत्पादन वाले पशु को फार्म में लाये जाने की व्यवस्था का न होना, आदि
7. फार्म को भौतिक और आर्थिक मानकों पर न चलाया जाना:
a. किसी भी व्यवसाय के लिए मानक आवश्यक होते हैं, चाहे वो भौतिक हों या आर्थिक, डेयरी रखने वाले पशु-पालकों का ध्यान इस ओर कभी नहीं जाना,
b. प्रत्येक पशु एक दुग्ध-उत्पादन की इकाई है और उसपर होने वाले व्यय और लाभ की जानकारी किसान को न होना,
c. पशु के प्रथम गर्भ धारण, प्रथम बच्चा जनन, बच्चों के बीच का अंतर, प्रत्येक पशु का गर्भाधान से 90 दिनों पर पुनः गर्भधारण, पशु का पीक उत्पादन मे स्थायित्व, आदि भौतिक मानकों की जानकारी पशु पलकों को न होना,
d. फार्म पर मासिक और वार्षिक कितना धन व्यय किया गया और कितना लाभ आया? कहाँ चूक हुई? कहाँ अच्छा किया गया? आदि की जानकारी का न होना,
e. फार्म में लगाए गए धन की वापसी कब हुई? कितने प्रतिशत हुई? कब ब्रेक-इवेन आया? कर्ज अदायगी कितनी हुई? जैसे मानकों के जानकारी का न होना, आदि
8. फार्म व्यवसायी में पशु प्रेम का अभाव:
a. डेयरी व्यवसायी को फार्म-कार्य प्रणाली की जानकारी का अभाव होना (ज्यादातर लोग फार्म-प्रणाली की जानकारी नहीं लेते और अपना समय भी फार्म पर नहीं दे पाते, जिससे उन्हे वास्तविकता का पता बाद में चलता है, जब तक नुकसान हो चुका होता है)।
b. फ़ार्मिंग एक धूल-मिट्टी-गोबर वाला काम है, जानवरों से प्रेम के अभाव में इसके विकास की संभावना कम होती है ।
c. गोबर की दुर्व्यवस्था पशु के बीमारी का कारण होता है जिससे पशु बीमार या मर भी सकता है,
d. फ़ार्मिंग सुबह 3.00 बजे से 10.00 बजे तक और शाम.3.00 बजे से 10.00 बजे रात तक का काम है, इसे 9.00 से 6.00 बजे का व्यसाय मानने की भूल करना,
e. फ़ार्मिंग में किसी भी दिन अवकाश की व्यवस्था नहीं होती, इस समझदारी का हमेशा अभाव दिखता है, आदि
9. दुग्ध उत्पादन से पहले उसे बेचने की व्यवस्था का अभाव:
a. ज्ञात हो कि पहले दुग्ध के बेचने कि व्ययस्था सुदृढ़ करनी चाहिए, तब उत्पादन की बात सोचनी चाहिए, इस प्रक्रिया का सदा अभाव होता है, जिसके कारण शुरू के दिनों में दूध बिक्री औने-पैाने दाम पर आर्थिक नुकसान सहन करके करना पड़ता है।
b. “जितना चबा सकें उतना ही बड़ा कौर मुँह में डालें” का फार्म पर अभाव दिखता है,
c. पहले शुरुआती दुग्ध बेंच की व्यवस्था, फिर जमीन, फिर पशु-शेड, नालियाँ और अन्य उपकरण, गोबर डिस्पोजल की व्यवस्था, फिर हरा और सूखा चारा, साइलेज, फिर पशु आहार, फिर पशु खरीद, फिर दुग्ध बिक्री करना। इस सिस्टम का सदा अभाव मिलता है।
भारत में डेयरी फार्म चलाने में उपरोक्त मुख्य चुनौतियाँ सामने आतीं हैं, जो ज्यादातर तकनीकी प्रशिक्षण के अभाव में किए जा रहे प्रबंधन व्यवस्था के कारण होती हैं। इन चुनौतियों के निदान के लिए, तकनीकी प्रशिक्षण लेना, लेबर को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करना, अपने फार्म पर एक व्यक्ति को “कृत्रिम गर्भाधान तकनीकि” और प्राथमिक चिकित्सा हेतु प्रशिक्षित करना, फार्म प्रबंधक को तकनीकी प्रशिक्षण दिलाना और मानकों के अनुसार ही फार्म का प्रबंधन में सुनिश्चित करना आवश्यक होता है। किसी जानकार डेयरी व्यवसाय कंसल्टेंट के संपर्क मे रहने से तकनीकी में सुधार करना संभव हो पाता है। समय-समय पर इन चुनौतियों का निवारण और फार्म प्रबंधन को सुदृढ़ बना लेने से कई परेशानियाँ अपने आप दूर हो जातीं हैं। मानकों की जानकारी तकनीकी विदों से ली जा सकती है और इनपर लगातार ध्यान देते हुए फार्म को सुचारु रूप से हमेशा लाभ में चलाया जा सकता है।
डेयरी फार्म को एक व्यवसाय समझकर मानकों के आधार पर चलाना ही फार्म को लाभ में रख पाता है। जीवित पशुओं के रख रखाव में हमेशा सावधानी वरतने की अवश्यकता होती है। उन्हे कभी भी अकेला नहीं छोड़ा जा सकता।
नाबार्ड योजना 2022: (हमारी जानकारी के अनुसार ये योजना अब लागू नहीं है। सीधे अपने जिले के नाबार्ड के नोडल से जानकारी प्राप्त करें)
आपने हमारे आर्टिकिल भाग-1 में जाना था कि बैंक-ऋण योजनाए कितनी जटिल, सीमित और कठिनाइयों से भरी हुई हैं। इस भाग में हम आपको नाबार्ड के नई योजना 2022, जो शायद पहले की योजनाओं की कमियों को दूर कर पाएगी, की चर्चा करने जा रहे हैं। यह योजना अप्रैल 2022 से लागू की गयी थी और इसमें बहुत सी बातों का ध्यान रखा गया था। जैसे छोटी डेयरी के साथ साथ अब बड़ी डेयरी परियोजनाओं (50 गायों/भैस) को भी शामिल किया गया था । इसके साथ साथ दुग्ध परिशीतन, प्रोसेसिंग, गोबर गैस, दुग्ध वितरण आदि को भी शामिल किया गया था । इस योजना में कंपनियों, उद्यमियों, गैर सरकारी संस्थाओं, और संगठित और असंगठित समूहों को भी पात्रता में शामिल किया गया था। विवरण नीचे के टेबुल-1 में देखें।
1. डेयरी के प्रशिक्षण हेतु नाबार्ड के प्रशिक्षण केंद्र पर भी जाया जा सकता है, जिसके लिए आपको अपने जिले के नाबार्ड के नोडल अधिकारी से संपर्क करना होगा। webmaster@nabard.org; (फोन: (91) 022-26539895/96/99) से संपर्क करें ।
2. यदि यह योजना चालू है, तो इसके लिए आपको अपने जिले के नाबार्ड नोडल अधिकारी के पास जना होगा, जहाँ आपको अपना प्रोजेक्ट रिपोर्ट जमा करना होगा और वहाँ की पूरी प्रक्रिया को पूरा करना होगा। उसके बाद आपको बैंक द्वारा दूध डेरी खोलने के लिए लोन मिल सकेगा। छोटी डेयरियों (2,4,6 ,8,10 गायों/ भैंस) के लिए आपको अपने नजदीक के बैंक से बात करनी होगी, और प्रोजेक्ट रिपोर्ट दिखाना होगा।
3. लोन के लिए आवेदन करते समय, आवश्यक दस्तावेज: आवेदक का आधार कार्ड, बैंक पास बुक, पासपोर्ट साइज़ फोटो, नाबार्ड डेयरी लोन एप्लीकेशन फार्म, नोडल अधिकारी जांच प्रमाद पत्र आदि।
4. ऑनलाइन के लिए आपको नाबार्ड के आधिकारिक वेब साइट www.nabard.com पर जाकर Nabard Dairy Loan Application Form PDF खोलना होगा, और उसमें मांगीं गईं सूचनाओं और दस्तावेजों को जमा करना होगा।
5. प्रत्येक राज्य सरकारों ने अपने-अपने वेबसाईट तैयार किये हैं- उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश सरकार के https://rajbhavanmp.in/nabard-yojana/#Central_Government_Scheme पर जाएँ- ध्यान रहे इन योजनाओं के सत्य होने के लिए जानकारी अवश्य ले लें। हो सकता है की ये योजनाएँ अब न चल रही हों।
6. यदि आप अपने जिले के नाबार्ड अधिकारी से मिलना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर संपर्क कर सकते हैं।
webmaster@nabard.org; (फोन: (91) 022-26539895/96/99)
यहाँ से आपको अपने क्षेत्र के नाबार्ड अधिकारी के बारे में संपर्क सूत्र मिल जाएगा। उदाहरण देखें:
ई/5, न्यू कॉलोनी, निकट छोटा पार्क, देवरिया – 274001 (उत्तर प्रदेश); Contact No: 0556-8796157; मोबाइल No: 9984555541; Email Id: deoria@nabard.org (यहाँ आप मेल भेज सकते हैं)
राष्ट्रीय गोकुल मिशन:
इस मिशन को, वैज्ञानिक तरीके से दूध उत्पादन और उत्पादकता में सुधार के लिए स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण की पहल के रूप में दिसंबर 2014 में शुरू किया गया था । बेहतर पोषण और कृषि प्रबंधन शामिल करते हुए, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के साथ इसे (राष्ट्रीय गोकुल मिशन) कार्यान्वयन करने की घोषणा की गई थी । यह मिशन 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय गोजातीय प्रजनन और डेयरी विकास कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था। इस योजना के तहत फंड एकीकृत स्वदेशी पशु केंद्र, गोकुल धाम की स्थापना के लिए दिया जाता है। निम्न टेबुल 2 देखें:
कामधेनु डेयरी योजना राजस्थान 2022
Kamdhenu Dairy Yojana Rajasthan 2022 के तहत एक ईकाइ अधिक से अधिक 36.68 लाख की होगी और इसमें लगने वाले कुल खर्च का 30% सरकार द्वारा वहन किया जायेगा। इसके आलावा 60% राशि बैंक के द्वारा लोन के तहत मिलेगी, इस प्रकार पशुपालक को मात्र 10% हिस्सा ही वहन करना होगा। इस तरह केवल 3.66 लाख रूपये लगा कर कोई भी शिक्षित पशुपालक जिनके पास पशुपालन का अनुभव और खुद की भूमि हो, अपना स्वयं का डेयरी फार्म शुरू कर सकते हैं। वर्ष 2022 मे मिल रहीं अन्य सुविधाओं की जानकारी के लिए वेबसाईट पर जाएँ :http://animalhusbandry.rajasthan.gov.in/ ।
कामधेनु डेयरी योजना 2022 (ऊतर प्रदेश): निम्न वेबसाईट पर जाए और जानकारियाँ पाएं।
उत्तर प्रदेश गोपालक योजना 2022: https://www.governmentschemesindia.com/uttar-pradesh-kamdhenu-dairy-yojana/
पशु-बीमा योजना:
दुधारू पशुओं का बीमा करवाना आवश्यक होता है तभी लोन मिलने की संभावना रहती है। बिना बीमा के लोन नहीं मिलता। पशु-बीमा का शुल्क (प्रीमियम) बीमा के प्रकार पर निर्भर करता है। जैसा बीमा वैसा प्रीमियम। हालाँकि आजकल दुधारु पशुओं के बीमा के प्रीमियम राशि पर सरकारें अनुदान देती हैं, यहाँ तक कि कभी कभी 90% तक अनुदान मिलता है। इससे पशु सुरक्षित रहता है । यदि कभी बीमारी आदि या दुर्घटना में पशु कि मृत्यु हो जाती है तो उसके बीमा राशि के भुगतान से दूसरा पशु खरीदा भी जा सकता है। किसान के लिए ये एक अच्छी सुविधा है, जिसे भारत में सभी राज्य सरकारों ने लागू किया है।
यह सुविधा पशु बीमा को एक ग्रुप में लेने पर ही लाभ मिलता है, हालाँकि उसका प्रीमियम अकसर तो सरकारें बहन करतीं हैं। साथ ही सब्सिडी मिलने की संभावना तभी रहती है जब पशु को किसी सरकारी अनुदान की योजना के अंतर्गत बैंक लोन द्वारा खरीदा जाए। अधिक जानकारी के लिए https://orientalinsurance.org.in/documents/10182/32354/RID-Cattle+Insurance.pdf/c6af2ed8-63f1-4461-a669-3cd073e6cb92 पर जाएं। बैंक से लोन लेना कठिन जरूर है परंतु असंभव नहीं है। यदि मंशा साफ हो और लोकल बैंक के ब्रांच अधिकारी सहयोग करें तो बैंक से लोन लेना आसान भी हो सकता है।
बड़े डेयरी व्यवसायियों को राष्ट्रीय गोकुल मिशन के ब्रीड मल्टीप्लीकेशन की ओर ध्यान देना चाहिए जहां प्रोजेक्ट के लागत का 50%, यानि 2 करोड़ की अनुदान राशि उपलब्ध है।
पशुओं के रख-रखाव और डेयरी फार्म को तकनीकी मानकों पर कैसे चलाया जाए, कि लाभ की स्थिति हमेशा बनी रहे -की जानकारी के लिए हमारे अगले आर्टिकिल “भारत में डेयरी फार्म व्यवसाय की चुनौतियां, कारण और निदान–भाग 3” पढ़ें।
लेखक: डा पी के श्रीवास्तव, डेयरी व्यवसाय कंसल्टेंट, बैंगलोर; फोन: +91 8073147467
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